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कहानी--किस्मत की लकीरें


कहानी--किस्मत की लकीरें

लोग कहते हैं किस्मत ही सबकुछ होता है।कुछ लोग यह भी कहते हैं--क्या होता है किस्मत?ये सारी बातें दकियानूसी है।जो भी है वह मेहनत होता है!

सच भी है मेहनत से भाग्य बदला जाता है लेकिन आज की कहानी का शीर्षक है--किस्मत की लकीरें
किस्मत की ही लकीरें बुनेंगी।

,,सरला..!,कहाँ हो?,

,,यहीं हूँ जी..ड्राइंग रूम के सोफे का कवर चेंज करते हुए सरला जी बोलीं।

,,सरला, पहले अपनी आँखें बंद करो।फिर तुम्हें एक सरप्राइज दूंगा।,,

,,अच्छा ऐसा भी क्या है सरप्राइज भला।चलिए कर लीं आँखें बंद अब बताइए क्या बात है?,,

अभिनव जी ने सरला के हाथों में कुछ थमा दिया।
,,अब अपनी आँखें खोलिए जरा।,,

,,अरे यह तो टिकट है मुंबई का।,,सरला ने टिकट देखती हुई खुशी से बोली।

,,आखिर आप टिकट कटा ही लिए।,,

,,हाँ जानेमन.. यह तुम्हारा गुलाम..आखिर मुंबई की टिकट कटा ही लिया।,,

बहुत ही दिलकश अंदाज में अभिनव ने सरला से कहा।
सरला और अभिनव की शादी को छह महीने से भी ज्यादा हो गए थे।

सरला को समुद्र के बीच्स बहुत पसंद थे।बचपन में उसका कुछ समय मुंबई में बीता भी था,इसलिए भी उसे मुंबई बहुत ही अधिक पसंद था।

~~

वर्सोवा बीच पर पहुंच कर सरला की आँखें भर आईं।
उसका बचपन लौट आया था।वह इधर उधर रेतों पर   दौड़ती भागती रही।फिर  वहीं बैठ कर बालू का घर बनाने लगी।

,,अरे तुम तो बिल्कुल बच्ची बन गई हो सरला!,,
अभिनव ने हँसते हुए कहा तो सरला ने कहा

,,अभिनव,आप भी आइए ना।आइए ना मिलकर रेत के घर बनाएंगे।,,

अभिनव भी सरला के बचपने को देखकर बच्चा बन गया।
वह भी वहीं बैठकर रेत के गुंबद बनाने लगा।
अचानक ही समुद्र  का एक बहुत ही बड़ा रेला आया और खींचते हुए सरला और अभिनव को बहुत दूर ले गया।

जब समुद्र का लहर वापस गया तबतक सरला और अभिनव पानी और रेत में सन चुके थे।
उनका बनाया घर भी बह चुका था।

अचानक सरला की नजर अपनी अंगुलियों पर पड़ी।
,,अभिनव, मेरी अंगूठी!नहीं है अंगुली में।,,

,,ओह नो..!,,अभिनव ने कहा।

अब दोनों अंगूठी ढूढ़़ रहे थे।बहुत देर तक छानबीन करने के बावजूद अंगूठी नहीं मिली।तब अभिनव ने कहा
,,जाने दो सरला, जो भाग्य में नहीं, उसके लिए भटकने से कोई फायदा नहीं। जिसके किस्मत में होगा उसे मिल जाएगा।,,
बहुत ही बुझे मन से दोनों वापस लौट गए।

~~
बसोर गांव मेंः

,,क्या हुआ अम्मा ,हमको काहे को बुलाई?,,झुंझलाते हुए किसन अपनी माँ से बोला।

,,अरे बाबू तुम्हारे बाबा को फिर से खून की उल्टी हुई है।,,

,,क्या..!!,बाबा तो अपना खयाल ही नहीं रखते हैं अम्मा, डागदर जी ने दो महीने पहले कहा था थोड़ा आराम कर लो लेकिन..!,,

,,अरे बबुआ, इतना कर्जा चढ़ा हुआ है सिर पर काम नहीं करेंगे तो कर्जा कैसे उतारेंगे?,,

रामदास ने किसन की बात काटते हुए कहा।
तब किसन ने कहा

,,बाबा, नन्हे ने इसी लिए मुंबई बुलाया था।वहां दरजनों कारखाने हैं  कहीं भी लगवा देगा हमारी नौकरी लेकिन बाबा तो मानते ही नहीं हैं।अब हम नहीं मानेंगे बाबा ।नन्हे आया हुआ है बसोर।हम उसके साथ मुंबई जाएंगे..।,,

रामदास निरुत्तर हो गया।कह नहीं सका ।मुंबई नौकरी देती नहीं बल्कि लोगों को लील लेती है।
लेकिन वह प्रत्यक्ष में कुछ भी नहीं कह पाया।

दो हफ्ते बाद नन्हे के साथ  किसन मुंबई पहुंच गया।
भागती हुई मुंबई..!!

,,... देवी मां मुझ गरीब का उद्धार करनामेरा बाबा बिस्तर पर पड़ा है और अम्मा के पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है.. खाली वापस मत भेजना..!,,

किसन ने मुंबई की धरती को छूकर कहा।
दूसरे ही दिन उसकी नौकरी एक सेठ के दुकान पर हो गई।
दिनभर कपड़ों के लेनदेन वह देखा करता था।

दिहाड़ी पर तनख्वाह बंधीं हूई थी।अब वह धीरे धीरे घर पैसा भेजने भी लगा।

कुछ दिनों बाद नन्हे और अन्य लोगों के साथ सबने वर्सोवा बीच पर घूमने का प्रोग्राम बनाया।

रेत पर चलते हुए कुछ किसन के पैरों में चुभा।
,, उठा कर देखा तो एक अंगूठी थी।
अंगूठी देखकर किसन की आँखें चमक उठीं।इतने दिनों से उसने सेठ के साथ  रहकर कपड़ों का व्यवसाय बहुत हद तक सीख लिया था।


सेठ  जी के  दुकान में काम करते सेठ ने उसे अच्छे अच्छे कपड़े मिल जाते थे।देखने में भी वह किसी साहब का बेटा लगता था।
जेवर के दुकान से उसे अंगूठी की अच्छी कीमत मिल गई।

अब वह मुंबई से सस्ते कपड़े उठा कर अपने गाँव भेजना शुरू किया। धीरे धीरे उसका धंधा चल निकला।
अब वह  एक सफल व्यवसायी बन गया था।
मुंबा देवी की कृपा ने किस्मत की लकीरें बदल दी थीं..!!

***
सीमा..✍️💕
©®
#लेखनी प्रतियोगिता





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6 Comments

Raziya bano

06-Jul-2022 08:56 AM

Nice

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Arvaz Ahmad

06-Jul-2022 08:34 AM

Nice

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Gunjan Kamal

06-Jul-2022 07:17 AM

बहुत ही सुन्दर

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